यू.पी. में जातीय गणित फेल, किसान अहम सवाल ।
लोकसभा चुनाव 2019 के दूसरे चरण में कल यूपी, बिहार, कर्नाटक, तमिलनाडु, पुदुच्चेरी, पश्चिम बंगाल और ओडिशा इत्यादी में मतदान होना है। उत्तर प्रदेश की कुल 80 सीटों के लिए सात चरणों में मतदान हो रहा है। पहले चरण में यूपी की कुल आठ सीटों पर वोटिंग हुई। दूसरे चरण में भी आठ सीटों पर मतदान होगा।
बात करते हैं यू.पी. की जहां पहले चरण के मतदान में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना एक बड़ा चुनावी मुद्दा था, लेकिन दूसरे चरण (18अप्रैल) में गन्ने की जगह आलू बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है। बता दें कि 18 अप्रैल को लोकसभा की 8 सीटों नगीना, अमरोहा, बुलंदशहर, अलीगढ़, हाथरस, मथुरा, आगरा, फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट पर 85 उम्मीदवारों के बीच चुनावी जंग होनी है। इसमें फतेहपुर सीकरी में सबसे ज्यादा प्रत्याशी मैदान में हैं तो सबसे कम सात उम्मीदवार नगीना सीट पर है।
आगरा और फतेहपुर सीकरी की कुल 57,879 हेक्टेयर जमीन पर आलू की खेती होती है, वहीं हाथरस में 46,333 और अलीगढ़ में 23,332 हेक्टेयर जमीन पर आलू उगाया जाता है। इसलिये इन चारों सीटों के लोग भी यही बात कहते हैं कि हमारे यहां का प्रमुख मुद्दा आलू ही है। स्थानीय निवासी यह भी कह रहे हैं कि हमारे खेतों से मोटा आलू प्रति 50 किलो के हिसाब से 300-350 रुपये में बिक रहा है। गुल्ला (मध्यम आकार) आलू 200-250 रुपये प्रति 50 किलो है और किर्री (छोटा) आलू की कीमत 100-150 रुपये है। और बीते तीन सालों से ये दाम कम ही रहे हैं ।
इसे विस्तार से समझें तो उत्तर प्रदेश के इन इलाकों में मध्य अक्टूबर से नवंबर के बीच आलू की खेती शुरू होती है। फरवरी से मार्च के बीच इसकी फसल काटी जाती है। किसान आम तौर पर अपनी फसल का पांचवां हिस्सा इस दौरान बेच पाते हैं, बाकी के आलू भंडार गृहों में पहुंचाए जाते हैं। इस दौरान भंडार गृहों के मालिक आलू की हरेक बोरी के लिए किसानों से 110 रुपये लेते हैं।
आगरा के भंडार गृहों की एसोसिएशन के अध्यक्ष बताते हैं कि जिले में ऐसे 280 भंडार गृह हैं। हरेक की क्षमता 10,0000 टन आलू रखने की है। वह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में इस तरह के 1800 भंडार गृह हैं। इनमें से 1000 भंडार गृह अकेले आगरा और अलीगढ़ जिलों के इलाकों में बने हैं। नोटबंदी से पहले आगरा के भंडार गृहों में आलू की एक बोरी 600-700 रुपये में बिक रही थी, लेकिन नोटबंदी के चलते 500 और 1000 रुपये के नोट बेकार हो गए, जिससे भंडार गृहों से आलू की इन बोरियों की बिक्री रुक गई। इन्हें मजबूरन 100-125 रुपये प्रति बोरी की कीमत पर बेचना पड़ा। रिपोर्ट के मुताबिक यह कीमत बड़े आलू की रही। गुल्ला और किर्री आलू तो एक तरह से मुफ्त में देने पड़े।
किसानों की समस्या के अलावा अन्य सीटों की बात करें तो फतेहपुर सीकरी, बुलंदशहर, अलीगढ़ और हाथरस हैं। जहां दूसरे चरण में मतदान में इन सीटों पर जातीय गणित भी फेल होता दिख रहा है और इसका कारण है, हर सीट पर एक ही जाति के कई उम्मीदवारों का होना। इन 8 सीटों में नगीना, बुलंदशहर, आगरा और हाथरस चार सुरक्षित सीटें हैं। मतलब साफ है कि चार सीटों पर हर पार्टी का दलित नेता ही उम्मीदवार होगा. ऐसे में जाति का वोट गणित फेल होना तो निश्चित है।
Thu Apr 18 , 2019
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