पिछले कुछ चुनावों के दौरान देश में किये एक सर्वे के मुताबिक 14 प्रतीशत वोटर मतदान के दिन तय करते हैं कि किसे देना है वोट जबकि कुछ देशों में अधिकतर वोटर पहले से ही बना लेते हैं अपनी राय, अन्य देशों में सबसे कम लोग करते हैं आखिरी दिन तक का इंतजार।
इसे समझने के लिये कुछ सवाल आपके सामने हैं जिससे बात साफ हो सकेगी।
राजनेता चुनावों में मतदान से कुछ दिन पहले ही प्रचार में सारी ताकत क्यों झोंकते हैं ?
विरोधियों को निशाना बनाने के लिए आखरी दिनों में ही शब्दबाणों की बरसात क्यों करते हैं ?
इसका जवाब भारतीय वोटरों के जेहन में छुपा है। देश के करीब 45 प्रतीशत मतदाता चुनाव प्रक्रिया की शुरुआत के बाद से मन बनाते हैं कि उन्हें किस उम्मीदवार को वोट करना है।
मतदान के समय किए गए एक्जिट पोल बताते हैं कि करीब 14 प्रतीशत भारतीय मतदान की पूर्व संध्या पर तय करते हैं कि उन्हें किसे वोट देना चाहिये।
यह एक ऐसा तथ्य है जो चुनावी अखाड़े में ताल ठोक रहे सूरमाओं और पार्टियों को आखिरी वक्त तक परेशान किए रखता है। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान सीएसडीएस के एग्जिट पोल को आधार मानें तो 2019 लोकसभा चुनाव में कुल 90 करोड़ वोटर्स में से 13 करोड़ वोटर्स मतदान वाले दिन ही उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे।
सीएसडीएस के एग्जिट पोल में 8 प्रतीशत वोटरों ने एग्जिट पोल सर्वेक्षणों के दौरान अपनी वोटिंग आदतों या राय बनाने के तौर तरीकों पर कुछ भी बताने से इनकार किया। लेकिन 13 प्रतीशत ऐसे भारतीय मतदाता भी हैं जो अपना फैसला आखिरी दिन पर नहीं छोड़ते। ऐसे वोटर मतदान से ठीक पहले वाले हफ्ते में ही अपना वोटिंग प्रेफरेंस तय कर लेते हैं। ऐसे वोटरों की संख्या 12 करोड़ बैठती है जो वोटिंग से एक हफ्ता पहले ही अपनी राय बनाते हैं।
18 प्रतीशत ऐसे वोटर तो पक्के इरादे वाले होते हैं। ये चुनाव प्रचार शुरू होते ही अपना पसंदीदा उम्मीदवार चुन लेते हैं। ये दोधारी तलवार की तरह होते हैं। ऐसे वोटर अचानक होने वाले घटनाक्रमों, राजनीतिक गलतियों या पार्टियों की ओर से कैंपेन के उतार चढ़ाव से प्रभावित नहीं होते।
2014 में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज की ओर से मतदान के दिन कराए गए एग्जिट पोल से निष्कर्ष निकला कि 47 प्रतीशत प्रतिभागियों ने चुनाव के एलान से पहले ही अपना मन बना लिया था कि किसे वोट देना है।
इस सबमे दिलचस्प यह है कि देश के बाकी 47 प्रतीशत वोटर वफादार वोटर हैं। ऐसे वोटर ही क्षेत्रिय पार्टीयों और अन्य क्षत्रपों की राजनीतिक मजबूती की पहचान हैं। साक्ष्य बताते हैं कि राजनीतिक दल भी इस वोटिंग पैटर्न को अच्छी तरह जानते हैं।
इसका उदाहरण है 2014 लोकसभा चुनाव में वहां मुड कर देखने पर साफ पता चलता है कि बीजेपी और उनके सहयोगियों ने उत्तर प्रदेश में कुल 80 लोकसभा सीटों में से 73 पर कामयाबी हासिल की थी। बता दें कि उत्तर प्रदेश में तब छह चरणों में चुनाव हुआ था और उस वक्त बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवीर नरेंद्र मोदी ने अचानक तीन चरण संपन्न होने के बाद उत्तर प्रदेश में ताबडतोड़ प्रचार शुरू किया था और रैलियों की झड़ी लगा दी थी।
उम्मीद है हमारी बात से आप भी सहमत हो गये होंगे।